शिवजी की पूजा में सफेद और लाल पुष्प के अलावा बेलपत्र, भांग, धतूरा, दूर्वा, अष्टगंध, धूप और दीपक रखें। इन सभी वस्तुओं से पूजा करने के बाद व्रत का संकल्प लें। आप चाहें तो निराहार व्रत रहें और समार्थ्य नहीं है तो फलाहार करके भी व्रत रहा जा सकता है।
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ध्यान रखें की इस दिन पूजा करते समय कोकिला व्रत कथा का पाठ जरूर करें।
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भगवान शिव को जब सती के बारे में पता चलता है तो वह यज्ञ को नष्ट कर, दक्ष के अहंकार का नाश करते हैं। सती की जिद्द के कारण प्रजापति के यज्ञ में शामिल होने तथा उनकी आज्ञा न मानने के कारण वह देवी सती को भी श्राप देते हैं, कि हजारों सालों तक कोयल बनकर नंदन वन में घूमती रहें।
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विश्वास है कि इस व्रत को करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
यह व्रत भौम दोष से मुक्ति दिलाने में भी सहायक होता है, जो विवाह में बाधा डालता है।
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आषाढ़ पूर्णिमा के दिन रखा गया यह व्रत संपूर्ण सावन में आने वाले व्रतों का आरंभ माना जाता है। इस व्रत में देवी के स्वरूप को कोयल रूप में पूजा जाता है। कहा जाता है कि माता सती ने कोयल रूप में भगवान शिव को पाने के लिए वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या के शुभ फल स्वरूप उन्हें पार्वती रूप मिला और जीवनसाथी के रूप में भगवान शिव की प्राप्ति होती है।
स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य देकर दिन का आरंभ करें।
ஶ்ரீ லம்போ³த³ர ஸ்தோத்ரம் (க்ரோதா⁴ஸுர க்ருதம்)